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संजौली हिल

 AFTER ALONG TIME दुबारा  उसी की तरफ बढ़ चला हूँ जिससे कभी या आज तक दूर भागता चला आ रहा था| आखिर भागता भी कन्हा  और कितना because karma is bitch and earth is round in shape . रुख किया आज फिर उन्ही वादियों का जिनसे कभी मैं रुखसत होकर आया था | जैसे जैसे मैं आगे बढ़ रहा हूँ उसकी यादों का बोझ अपने सीने पर महसूस करते जा रहा हूँ | कुछ यादें किस तरह  आपकी ज़िन्दगी को बदल देती हैं इसका अंदाज़ा आज मुझे पता चला | शय वो खूब कहा  है किसी ने  दिल्लगी अच्छी है साहब  दिल पर लगी नही ! सोलन ३४ किलोमीटर जिस की बोर्ड पर लिखा मैंने पाया ओह बोर्ड मुझे किसी फंसी के फंदे की तरह लग्ग रहा था माने वह मेरा इंतज़ार कर रहा हो | सोलन से आती हर एक गाडी मुझे मेरी दोस्त  और वंहा की तरफ जाती हर एक गाडी मुझे मेरी शत्रु लग रही थी | मेरा मन जोर जोर से चींख रहा था की काश ये ३४ किलोमीटर कभी खत्म ना हों | ये पहाड़ जिनका मैं कभी दीवाना हुआ करता था आज इन्हीं  से भागने का जी मेरा करता है| मैं लगातार यह सोच रहा था की  I DON'T WANNA FACE THIS SHIT AGAIN.  आज मानो मेरी सारी हिम्मत मुझे जवाब दे रही हो|पर जाना तो है ही | एक लम्बे सफ़र
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असहजता या असफलता

असफलता यर असहजता चाहे आप कुछ भी कह लीजिए यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू बन जाते हैं जब निर्णायक सिक्का किस्मत या भविष्य के खेल में उछलता है। चाहे इसे भारतीय मानसिकता कह लीजिये या फिर अभिशाप मध्यवर्गीय का परंतु सच यही है कि काबिलियत दरकिनार कर दी जाती है जब आप असफलता की गली का रुख करते हैं। दृश्य  कुछ ऐसा होता है कि गली बेहद तंग हो और आप वँहा अब गुज़र रहे हुम तंग गलियारें के चारों ओर ऊंची ऊंची इमारतें हों जिसकी बालकनी पर मानो हाथ में कालिख व चबूख लिए मानो अपने ही आपको मारने के लिए अमादा हों। यह मंजर बड़ा भयावह होता है जनाब। जब गली का दरवाजा खुलता है तो समय की टिकटिकाहट मानो असहजता की सारी बेड़ियों को तोड़ती आपको आपगे बढ़ने पर विवश करे। गली मानो उस फांसी के फंदे की तरह लग रही हो जो आपका बेसब्री से इंतजार कर रहा हो। जैसे ही गली में आगे की ओर बढ़ा जाता है सहसा कोई हाथो में कालिख लिए आपको रँगने को तैयार हो कोई चबूख ले आपके शरीर को छल्ली छल्ली करने को खड़ा हो और कोई जब आपके अपने हो तो  दृश्य भयावह हो जाता है। आखिर असफलता व सफलता के बीच इतना विभेद क्यों? व्यवहार की प्रकृति में फेरबदल क्यों मानो आप

कुछ बीते दिन और तुम

कुछ बीते दिन और तुम एक रोज़ बैठा था बालकनी में, निहार रहा था उस डूबते सूरज को। एक और दिन कैसे निकल गया मानो पता ना चला। घर लौटते पक्षी, सरसराहती हवा, और क्षितीज पर धुंधली पड़ती लालिमा जैसे कह रहे हो कि तू फ़िजूल में आस लगाए बैठा है। हां ! वैसे सही भी है , प्लेटफार्म पर बैठ कर हवाई जहाज़ की राह ताकना भला कंहा की समझदारी है।  यह सब देख कर मानो हाथ दिल की बातों को कहने पर उतारू हो गए। इस तरह शुरुवात होती है उन चंद पंक्तियों की जो आज इस पन्ने पर छपने वाली हैं। ●एक रोज़ जो बैठा उस मोड़ पर, जंहा दामन तेरा छूटा था। छोड़ मैं भी देता तुझे, अगर तूने सिर्फ मुझे छोडा होता। कैसे रुख करूँ भला आशियाने की तरफ, जबकि तूने मुझे छोड़, कंही का नही छोड़ा। ●मुसलसर उन्ही राहों से गुजरता हूँ अक्सर, चाह में,कंही दीदार तेरा हो जाए। तू बता कैसे राह अपनी बदल लूं, जबकि तूने राह छोड़ मुझे किसी राह का न छोड़ा। ●वो टिकटिकाहट घड़ी की अभी भी 11 बजती है, ठंडी सर्द रातें अभी भी बेहद सताती हैं, इयर फ़ोन का वो कानो तक पहुंचना, किवाड़ कमरे के आज भी बंद हो जाते हैं, पुराने बने इस हसीन मौसम में, गुफ़्तगू किसी

बेरंग समा

बेरंग समा ●दामन जब तेरा छूटा, अंधेरों से रिश्ता जोड़ लिया हमने। ●रंगों से दुश्मनी हो गयी है, नसीब काली रातों को मान लिया हमने। ●लगता है डर रंगीन सुबह को देखकर,  रुख रातों की तरफ अपना कर लिया हमने। ●खिले रुखसार खुद के पसंद नहीं मुझे, बीती तस्वीरों को निहारना छोड़ दिया हमने ●छेद रहे थे रंग दिल को गहराई से, लिबास में कालिख को अपना लिया हमने। ●दीदार अक्सर तेरा होने लगा था खुद में, निहारना खुद को छोड़ दिया है हमने। ●ज़िक्र तेरा ना हो जाए कंही भरी सभा में, अपनों से भी मुंह मोड़ लिया है हमने। ●और कितना बदलें खुद को बता ए मेहरमा,  तेरे लिए खुद का क़त्ल कर दिया हमने। कुछ बीते दिन आवर तुम: https://predatorashu.blogspot.com/2020/01/blog-post_13.html

हम और हम

हम और हम ●अकेला सा पड़ जाता है इंसान जब मतलब दुनिया के पूरे हो जाते हैं। ●भीड़ से अनजान हो जाता है इंसान, जब बिगुल बगावत के बजाए जाते हैं। ●ये इंसान है, जात तो गद्दार होगी ही, वफादारी के ताज तो सिर्फ कुत्तों को पहनाए जाते हैं। ●रिश्ते तब दरकिनार हो जाते हैं, जब दरमियां मैं हम के आ जाते हैं। ●मिलनसार भी अजनबी बन जाते हैं, जब अपनों के बीच फसाने गैरों के आ जाते हैं। ●जगह नही होती अहम की ग़ालिब रिश्तों में, अहम जंहा आए रिश्ते वो अहमियत खो जाते हैं। ●कीमत बुलंदी की सिफर है अपनों में, बिना अपनो के नायाब महल वीराने हो जाते हैं ।

Rape!what does the law say??

Rape! what does the law say?? ( बलात्कार! क्या कहता है कानून??) नमस्कार आप सभी का इस ब्लॉग में। एक समय था जब महिलाओं को देवी स्वरूप पूजा जाता था,आज अखबार के पन्नों में इज़्ज़त का तार तार होना मानो आम बात हो गई है। यह ब्लॉग एक शर्मनाक कृत्य और उसके लिए दी गयी परिभाषा के विषय में है। जंहा एक ओर देश राम मंदिर, कश्मीर जैसे बड़े मुद्दों पर पार चुका है , निर्भया और न जाने कितनी निर्भयाओं के खून से सनी सड़कें यह ओकात दिखा देती है कि देश में महिला सुरक्षा किस कदर नाज़ुक-ए-सूरतेहाल में है साथ ही यह देश के एक वर्ग की तुच्छ मानसिकता को भी प्रदर्शित करती है। ‛बलात्कार' मात्र शब्द भर किसी की ज़िंदगी और मौत के बीच का फांसला बन जाता है। यदि मुगल काल और मुस्लिम राज्यों में सज़ाओं पर गौर की जाए तो शायद ही कोई ऐसी सज़ा होगी जो इस कूर कृत्य के लिए दी जाए। प्रश्न यह है कि किसी के जीवन की क्या कीमत लगा सकती है न्यायपालिका???? इस विषय पर ज्ञान के लिए आइए जान लें कि कानून के अंतर्गत इसकी परभाषा क्या है। हालांकि इस विषय मे फ़िल्म अभी हाली में बनी भी है। Section 373( सेक्शन375) भारतीय दंड संहित

Dholavira A Mystery

Dholavira A Mystery (धोलावीरा एक रहस्य) स्वागत है आपका इस ब्लॉग में! आज का ब्लॉग पुर्णतः रहस्यात्मक विषय पर बना है । वैसे तो भारत की भूमि अपने भीतर अनेकों रहस्यों को दफनाए हुए है परंतु धोलावीरा भारतीय सभ्यता के उस राज को समेटे हुए है जिससे मानव सभ्यता के विकास को गहराई से समझने में सहायता मिलेगी।तो आइए चलते हैं उस रहस्यात्मक युग में जंहा से इसका उद्भव हुआ। धोलावीरा इस शब्द की उत्पत्ति उस काल में हुई जब सिंधु सभ्यता अपने व्यापारिक सम्बन्धों को मिस्त्र व मैसोपोटामिया से कायम कर रही थी। उनके इस व्यापारिक विस्तार ने इस बात पर मुहर लगा दी थी कि सिंधु घाटी सभ्यता मात्र एक छोटे क्षेत्र में विकसित नही हुई थी। सिंधु सभ्यता के 6 मत्वपूर्ण क्षेत्रों में मोहनजोदड़ो,कालीबंगन,लोथल, हड़प्पा,राखिगढ़ और धोलावीरा  प्रमुुुख थे।  विभाजन के बाद रेडक्लिफ रेखा ने यह प्रमाणित कर दिया कि मोहनजोदड़ो जो एक मुख्य क्षेत्र था पर पाकिस्तान की मुहर लग चुकी है। जिस कारण भारतीय पुरात्तव विभाग से ज्ञान का एक व्यापक संसाधन दूर हो गया। किसी समय में जलमग्न रहा धोलावीरा जब विवर्तनिकी से सामने आया तो पुरात्तव वि